यह कविता भारत के नागरिकों के लिए नहीं बलके भारत के सच्चे सपूतों के लिए समर्पित है |
मैं भी लिख-लिख कर प्रेम गीत मजनू के हिस्से के पत्थर गिना सकता हूँ,
मैं भी पी-पी कर देवदास की प्यालों का नुमाइश लगा सकता हूँ,
पर, मैं फिर से लाठी को गाँधी का हाथ थमाने आया हूँ,
मैं बहनों को झाँसी की तलवार बाजी सिखाने आया हूँ | (१)
मैं भी सुपर मॉम को देखकर, सुपर डैड बनने की तय्यारी कर सकता हूँ,
मै भी इण्डिया के सबसे बड़े ड्रामे बाज़ का ड्रामे का डैडी बन सकता हूँ, पर
मै जिजामतावों को शिवाजी के साहस की कहानियां फिर से सुनाने आया हूँ,
मै फिर से फंदों के लिए भगत, सुखदेव और राजगुरु के गले का नाप लेने आया हूँ | (२)
मै भी मर्यादा व सभ्यता को लांघती सर्कस में कॉमेडी कर सकता हूँ,
मै भी चंद गिने चुने सवालों के उत्तर दे कर करोड़ों कमा सकता हूँ, पर
मै जलियाँवाला बाग में मशाल लिए, उधम का हाथ थामकर चलाने आया हूँ,
मै काकोरी के जाँ-बाजों के शहादत से खाली हुई जगहों को फिर से भरने आया हूँ | (३)
मै भी क्रंच में मदहोश होकर अपने चरित्र (कैरेक्टर) को मंच (munch) कर सकता हूँ,
मै भी भावुकता में हद से बहकर, उसे अत्याचार का लेबल लगा सकता हूँ, पर
मै बंकिम के वन्दे मातरम का साहस देकर आन्दोलनकारियों को जगाने आया हूँ,
मै सोये हुए राणा और चौहाण को फिर से प्रताप दिखा ने के लिए जगाने आया हूँ | (४)
मै भी बॉस के आँगन में रासलीलाएँ खेलकर अपने शुचिता का बखान कर सकता हूँ,
मै भी घर पर नाचने-गानेवाले, टैलेंट से भरपूर लोगों का एक टीम बना सकता हूँ, पर
मै गुरु गोविन्द और बन्दा बैरागी को फिर से शहादत का निमंत्रण देने आया हूँ,
मै सरफरोशी के तमन्ना रखनेवाले उन मद-मस्त हवावों के चोली को बसंती रंगने आया हूँ | (५)
मै भी देश की हालत पर ओरों को कोस्- कोस्कर, अपने दिल की आग को बुझा सकता हूँ,
मै भी कोई सिनेमा देख या हारी हुई मैच की विलम्बित (बिलेटेड) कॉमेंटरी कर के खुद को बहला सकता हूँ,
पर, मै नेताजी के ऐ. एन. ए. के वीर क्रांतिकारीयों के जीन्स को ढूंडने आया हूँ,
मै अपने लिए सीमापर जान लुटाते भाइयों के लिए मर-मिटने आया हूँ | (६)
सब ठीक है पर, मै……!
मै कौन?
मै,
मै वही स्वाभिमान हूँ, जो सब के भीतर रहता हूँ,
मै वाही हूँ जो तुम्हारी हर गलती पर टोकता-रोकता रहता हूँ |
मै वही हूँ जो तुम्हारी हर ज़िद को खामोशी से सह लेता हूँ |
मै वही हूँ जो मर कर भी नहीं मरता हूँ |
मै वही हूँ जो हर पल तेरी उन्नति चाहता हूँ |
मै हूँ तुम्हारे भीतर का सच्चिदानंद (सत्य-चित्त-आनंद) स्वरुप,
मै हूँ सब के भीतर का “आत्म ब्रह्म” |
-- अभिनव भारत
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