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Friday, September 13, 2013

उठो... जागो..!





रुकना न तू , झुकना न तू 
मंजिलों की राह पर कभी थकना न तू 
आंधी है तू, तूफ़ान तू 
माँ भारती का वीर संतान तू |

विश्व की आबादी का
यौव्वन है तू,
जो ठान ले तो बदलदे
भारत का भविष्य तू |

अपनी शक्ति को भूला
कहाँ अग्न्यात में जी रहा है तू,
यूँ सदियों से सहेम सिमटकर
क्या पाया है तू ?

देश की दुर्दशा पर आँख मूंद
अपनी छोटी सी आशियाँ में खुश होना न तू,
युवा है तू, बुलंद है तू
देश के शौर्य के उबाल का प्रतीक तू |

यूँ सभ्यता के आढ़ में खुद को छुपा कर
कर ना न अपने ही वतन से गद्दारी तू,
यह संग्राम है अस्तित्व का और स्वाभिमान का
कहीं बीच राह पर छोड़ राण को न भाग तू |

यूँ बुराई व अन्याय का बखान कर
अपनी लाचारी का परिचय देना छोड़ तू,
हाँ, हो ने दो सत्य के पथ पर अन्धकार घमासान
हिम्मत जो करले तू तो इसी राह पर मिलादे भोर तू |

होंगे बड़े राजनीति में कुम्भकर्ण बकासुर
जैसे असुर महान,
भाग जायेंगे सब, तू जो ले हाथ में
सुदर्शन या तीर कमान |

एक बार निकला तो घर से फिर सोचना न
स्वार्थ के सपनों का होगा क्या?
जब सूरज बनकर फैलादे तू दुनिया में रोशनी
सोच के दिया बन कर जलने में रखा है क्या?



-- अभिनव भारत

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