किस्मत वो खेल है,
जिस के एक ओर हम हैं और दूसरी ओर खुदा खुद ।
एक तरफ़ अपनी ज़िंदगी दावं पर है तो दूसरी ओर उसका गुरूर ।
न उसका इम्तेहां रुकता है न अपना हौसला टूटता है ।
अब कॊई उसे बतादे की,
जिसे मिटाने की वो कॊशिश कर रहा है,
ज़िंदा तो बस वो उसी दिल मे रहता है ।
-- कल्याण कुल्कर्णि
No comments:
Post a Comment