भूखों को खाना नहीं मिलता है
और कहीं बदन छुपाने को कपडा
बस मिलती है तो बेमौत हर दिन मौत यंहा
कितना बदलगया हिंदुस्तान !
मेहंगाई के बॊझ तले दबते हैं अरमान
अरमानॊं की अर्थी लिये जीते हैं इन्सान
बन गयी है पत्थर फत्थरोन को पूजनेवालि सन्तान
कितना बदलगया हिंदुस्तान !
इन्सानियत को न ढूंडिये, बिकते हैं ईमान यहां
ज़िंदगी तो सस्ति है पर लगति हैं मुर्दॊं के बॊलियां यहां
घायल दिल के पचास हज़ार और रुकी सासॊं के एक लाख हैं दाम यहां
कितना बदलगया हिंदुस्तान !
खुदगर्जी के मांजे ने काट दिये धागे मोहब्बत के पतंगों के
खुशियॊं के शॊर मे दब गयी हैं दर्द अपनॊं के चीखॊं के
इस दुनिया की मेहफ़िलों मे हैं गूंजते राग तनहाई के अहेसासॊं के
कितना बदलगया हिंदुस्तान !
आज़ादि तो है बस बेहॊशी मे ख्वाब बुनने का
हक तो है बस चुन कर लुटेरॊं कॊ लूट के ठेके देने का
चलते हैं यहां हस्तक्षेप परायॊं के, स्व-राज तो है बस नाम का
कितना बदलगया हिंदुस्तान !
अजब गणतंत्र का गज़ब शासन है यहां
तंत्र है करती शॊषण हर दिन गण का यहां
बस धन और बल का है बॊला-बाला यहां
कितना बदलगया हिंदुस्तान !
राम की सन्तानॊं मे आज पलते हैं रावण यहां
श्याम की भूमि पर है कंस, जरासंध के उपासक यहां
सत्य को हर कदम कुरुक्षेत्र से गुजरना पडता है यहां
कितना बदलगया हिंदुस्तान !
झांसि की राणी का शीश झुकता है, देख कयरता के दुश्य यहां
भगत और बिस्मिल के जुनून को देते हैं आतंकी करार यहां
शहीद नहीं, सिर्फ़ सत्ता पर बैठे ऐय्याश हैं मर्यादित यहां
कितना बदलगया हिंदुस्तान !
हां अब अपनी बारी है, अपनी ज़िम्मेदारी है
कुछ भी हॊ अब देश का भाग्य बदलना तो ज़रूरी है
आज के अपने आलस्य से कल के भारत को न डूबने देना है
अब तुझे बदलना ही होग हिंदुस्तान...!
हां अब तुझे बदलना ही होग हिंदुस्तान...!
-- कल्याण कुल्कर्णि
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