मै भारत का रहनेवाला हूं
एक भारतवासी की व्यथा सुनाता हूं
अपने घायल जजबात के आसुओं को
स्याही बनाकर बहाता हूं
मै भारत का रहनेवाला हूं ॥
जब जब अपने भाई सीमा पर लडते शहीद हुए
और उनके शहादतों पर सियासी ठेकेदारों ने
समझौतों से कफ़न ओढ दिये
जब उन वीरों के मा और विधवाओं के आंचल मे
चंद रुपियों के टुकडे डाल
दॆश के ईमान को शांति मंत्रों से तोल दिये
तब तब अपने आहत दिल को कलम थमाकर फिर
अपने आंचल सी कागज पर खूब स्याही के आसुं बहाता
हूं
मै भारत का रहनेवाला हूं ॥
जब जब निर्दॊश कोई अतंक का शिकार होता है
ज़िंदगी मौत से अपना कसूर पूछता है
और जब दॊशी जेलों मे अपनी मनमानी से जीता है
सरकार उसे जीने का हक देने की बात पर अडजाता है
और जो गुज़र गये उनके लाशों पर फ़र्ज़ी मदत का वादा
कर
हुकूमत अपने दायें जेब से बायें जेब मे पैसा बदलता
है
तब तब अपने घायल दिल के ज़ख्मों को कायरता का
चॊली पेहना कर सभ्यता के मुखौट मे फिर से बिलख बिलख
कर रोता हूं
मै भारत का रहनेवाला हूं ॥
जब जब किसान कोई अपने हक के खातिर लडता है
सियासत अहंकार मे उस पर डंडे और गॊलीयां बरसाता
है
यह कैसे तडक्की के मायने हैं
या अपना सब कूछ सौंप दो या फिर जीने का आस छोड दो
नजाने यह सरकार कौन सी नई फसल उगाना चाहता है
अपनॊं का रक्त बहाकर नजाने कौन से ज़िंदगी के बीज
बोना चहता है
तब तब मै इस कुरुक्षेत्र मे खुद को इन तडक्की के
मायनों के
चक्रव्युह मे अभिमन्यू सा पात हूं और इस मंजर को
देख सिसकियां भरता हूं
मै भारत का रहनेवाला हूं ॥
जब जब सरकार रात के चोरों को पकडने के लिये जाल
बिछाता है
और दिन के लुटेरॊं को सफ़ेद कपडों मे छुपाता है
जब अधीकार और दौलत के नशे मे अपनों के पेट से सौदा
करता है
जब बत्तीस रुपिये वालों को अमीर करार कर खुद को
तसल्ली देना चाहता है
जब गरीबी और बेबसी के चीखॆं संसद को टकराकर खाली
हात लौट आती हैं
अंदर का नेता जब देश की हालत पर गांधी के तीन बंदरों
को अपने मे धारण करलेता है
तब तब समंदर सा जजबातों का उबाल आता है मेरे खून मे
और परबत सा उछाल आता है शौर्य का नसों मे, पर मै
बस बेबसी और लाचारी की राशन का आदतन होगया हुं
मै भारत का रहनेवाला हूं ॥
जब दस जनपथ की पथ पर एक सत्य दस टुकडों मे बट जाता
है
जब राज भवन की स्वार्थ शोरों मे उम्मीद का दम टूट जाता है
जब कौरव सभा सी संसद मे सविंधान का हर दिन चीरहरण होता है
जब इस देश का स्वाभिमान भिश्म सा शय्या पर लेटजाता है
जब चुनाव मे जयचंद या मीर-जाफ़र मे से एक को चुनना पडता है
जब सारा देश उस तारणहार के इंतज़ार मे अपने धनंजय के दायित्व को भूल जाता है
जब राज भवन की स्वार्थ शोरों मे उम्मीद का दम टूट जाता है
जब कौरव सभा सी संसद मे सविंधान का हर दिन चीरहरण होता है
जब इस देश का स्वाभिमान भिश्म सा शय्या पर लेटजाता है
जब चुनाव मे जयचंद या मीर-जाफ़र मे से एक को चुनना पडता है
जब सारा देश उस तारणहार के इंतज़ार मे अपने धनंजय के दायित्व को भूल जाता है
तब तब मै अपनी दोहरी मनसिकता के कारण संवेदना हीन
होकर
घर बैठ कर संजय सा टी.वी. पर लुटते भरत की तस्वीर
को
मै भारत का रहनेवाला हूं ॥
जब जब पश्चिम का पर्चम आंखों से उतर सीने पर लेहराता दिखत है
जब भरत मा को कोस, सपूत कोई, मौशी के गोद मे खुद की धन्यता समझता है
जब दॆश राजनैतिक बेडियों से निकलकर मानसिक गुलामी मे कैद नज़र आता है
जब कोई केहता है की न वह भगत क भाई है, न गान्धी का संबंधी है
जब मौल्य विहीन शिक्षण मातृ भूमी को मंडी बनाकर अपनों को लुटना सिखाता है
जब कोई बीती गौरवशाली इतिहास के गुण गाने मे ही वर्तमान को भुला देता है
मै भारत का रहनेवाला हूं ॥
धृतराष्ट्र की भांती अंधा, बेहरा और मौन होकर विवशता के आढ मे देखता हूं
मै भारत का रहनेवाला हूं ॥
जब जब पश्चिम का पर्चम आंखों से उतर सीने पर लेहराता दिखत है
जब भरत मा को कोस, सपूत कोई, मौशी के गोद मे खुद की धन्यता समझता है
जब दॆश राजनैतिक बेडियों से निकलकर मानसिक गुलामी मे कैद नज़र आता है
जब कोई केहता है की न वह भगत क भाई है, न गान्धी का संबंधी है
जब मौल्य विहीन शिक्षण मातृ भूमी को मंडी बनाकर अपनों को लुटना सिखाता है
जब कोई बीती गौरवशाली इतिहास के गुण गाने मे ही वर्तमान को भुला देता है
तब तब फिर से "शायद एक दिन सब बदलेगा" यही सोच के
उस कल के चाहत मे अपने चादर मे सदियों से
करवट बदल बदल कर रात गुज़ारता हूं
मै भारत का रहनेवाला हूं ॥
-- कल्याण कुल्कर्णि
बेहद खूब 👌👌❤️❤️🤝
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