नजाने इतना शोर क्यों है?
क्यों है इतना हंगामा?
बस एक सीधी बात कहानी है
और एक सिधिसी बात सुनानी है |
बताना है मुझे सर दर्द है
पर गला फाड़ के क्यों कहना पड़ता है?
दिल से दिल का है सौदा पर नजाने
क्यों लफ़्ज़ों को हजारों में तोलना पड़ता है?
कितना बदल गया इनसान ||
हर किसी को अपनी बात मनवानी है
हर किसी को हर चीज में अपनी राय देनी है
अपने दिल की बात कोई और न कहदे
नजाने ऐसी क्यों होड़ लगी है?
हर सुविचार की गंगा का स्रोत खुद के ही घर से बहाना है?
खुद नहाये या न नहाये बस दूसरोंको उस में नहलाना है
खुद की आत्मा है प्यासी पड़ी पर नजाने क्यों
ज़माना औरों को अमृत पिलाने चला है?
कितना बदल गया इनसान ||
हम में से हर कोई बुद्धिजीवी है
हमेशा दिमाग में एक बहेस लिए चलते हैं
मिडिया का नजाने ये कैसा असर है ?
हर कोई सनसनी फैलाना चाहता है
एक ज़माना था जब हर चमकती चीज़ को हमने हीरा माना था
अब किसी ने कह दिया की हर चमकनेवाली चीज़ हीरा नहीं होती
फिर भी हीरा तो चमकत ही है यह समाज हम भूलगये
विचार और जीवन का संतुलन कितना बिगड़ गया है |
कितना बदल गया इनसान ||
हर चीज़ को संशय की दृष्टी से देखने की आदत सी होगई है
हर सीधी बात के सौ मतलब निकालने की मिजाज़ सी होगई हैं
हर सत्य तथ्य (साबुत) की मोहताज बनगई है
हर अन्याय अदालत की मोहर मांगती है |
इस संशय की बुद्धि से भ्रमित हुए हम
बापू की साख पर दागलगते नहीं हिचा-किचाते हम
एक सिपाही की शहादत पर आलोचना करते हैं हम
भूख से बिलखते नन्हों की चरित्र को भी आंकते हैं हम |
कितना बदल गया इनसान ||
कहते हैं, हर तमन्ना करलो पूरी क्यों की
ज़िन्दगी नहीं मिलेगी दोबारा यहाँ
नजाने कितनी बार ख्वाइशों पर दम तोड्देती है संस्कार और संस्कृति यहाँ
देश, समाज और धर्म के नाम पर तो दिखावे हैं बस
सच्चाई यह है की खुद को बदलना किसी को नहीं है यहाँ
कितना बदल गया इनसान ||
-- के. कल्याण
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