जीवन जीना एक कला है तो इसे बखूबी जीना है, न के ऐसे ही, के मनवृत्ति से गिरते सम्हलते ।
इस चित्र में
सबसे निचली लाईन(क्ष-एक्सिस) = भगवान
दाई और का लम्बा लाईन(य-एक्सिस) = जीवन स्तर
पीला लाईन = आत्मवृत्ति
सफ़ेद अढा-टेढा लाईन = मनवृत्ति
पीले लाईन के उपरवाली सीधी लाईन -----> गर अपना जीवन इस लायींन की तरह हो (मतलब हमेशा भगवान् और आत्मा से जुडाहुआ) तो वह हमेशा शांत, सुखी और जीवन के हर उतार चढाव को आसानी से पार करनेवाला, हिम्मतवाला और सच्चरित्रवाला होगा ।
सफ़ेद लाईन के उपरवाली सीधी लाईन -----> गर अपना जीवन अपने मन मुताबिक ढलने की कोशिश करेंगे तो वह कभी सीधी नहीं होगी। वह जीवन का सफ़र हमेशा कंटोसे भरी होगी (जैसे वह लायीन है) । मन जिंदगी की शुरुवात से आखरी सांस तक हमें अपने इशारों पर (अनंत काल तक और हर परिस्थिति में) नचाएगी ...। वह जीवन कभी सुखी नहीं होगा । ऐसा जीवन, जीवन में मूल्यों से ज्यादा जीवन अभाव और आडम्बर जोरों पर रहते है । मन मस्तिष्क पर हमेशा अतिसुख की कामना और भावनावों का आहत होने का डर हावी रहता है ।
जब हम आत्मसाद होकर भगवान से जुड़कर जीवन के निर्णय लेते हैं और जीवन निर्वहण करते है तो हमें सदैव भगवान का आशीष प्राप्त होगा । जीवन जीने की कला समझ आएगी । तब हम किसी भी विषम और स्तुत्य परिस्थिति में विचलित नहीं होंगे । और यह जीवन का आनंद सर्व श्रेष्ट होगा ।
इस का पालन शुरू में त्रास देह लगेगा पर जब संकल्प से प्रेरित कुछ दिनों के प्रयास के बाद वह अत्यंत प्रिय और अनुसरणीय लगेगा ।
तो सोचिये हमें कैसे जीवन जीना है ?
- के. कल्याण
No comments:
Post a Comment