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Thursday, November 22, 2012

धर्म व अध्यात्म


 
धर्म व अध्यात्म


हम कई बार धर्म और अध्यात्म को एक ही मानते हैं । पर उन दोनों में अंतर है ।

धर्म हमारे कर्म और व्यवहार से जुडाहुवा है । धर्म एक विशिष्ठ समुदाय या राष्ट्र की जीवन शैली का मार्ग दर्शी होता है । दूसरे भाषा में कहे तो धर्म एक कर्म से जुडी धार्मिक उसे माननेवालों के लिए एक अलिखित या अलिखित (सं)विधान है, जिस पर चलकर लोग अपने सामाजिक और व्यक्तित्व की उंचाईयों को पार करलेते हैं । धर्म लौकिकता (बाहरी दृष्टी)से सामाजिक या व्यक्तिगत होता है । इसीलिए सारे धार्मिक ग्रन्थ बाहरी रूप से सार्वत्रिक लगाती हैं । धर्म एक सामाजिक बाध्यता मानाजाता है ।

आध्यात्म मन, बुद्धि के विचार या सोच से जुडा होता है । आध्यात्म एक विशिष्ठ समुदाय या राष्ट्र की जीवन शैली का मार्गदर्शी नहीं बलके बहोत ही व्यक्तिगत होता है । इसी लिए आध्यात्म का मतलब आदि + आत्मा है, जहाँ आत्मा के माने एक व्यक्ति न के समुदाय । यह सदैव आत्मा के सत्य, न्याय आदर्श व्यवहार के प्रति अलिखित (सं)विधान मानाजाता है । आध्यात्म आतंरिक (आत्मा) दृष्टी से व्यक्तिगत होता है । चाहे सारे धार्मिक ग्रन्थ बाहरी रूप से सार्वत्रिक लगाती हैं पर जब उन्हें पढेंगे तो लगेगा की वह हमारी/व्यक्तिगत ("मेरी") आत्मोन्नति केलिए ही हैं।

इस दुनिया में हम सदैव धर्म को मान कर उसे सार्वत्रिक रूप से फ़ैलाने की कोशिश / उपदेश करते हैं । यही विविध धर्मों के बीच की लड़ाई का कारण है। जब धर्म के अन्दर की गूडार्थ अध्यात्म को समझ कर वयक्तिक स्तर पर अपनाएंगे तो बहोत से धर्म सम्बंधी लडाई व तनाव से मुक्ति मिलेगी । चलो हम अध्यात्म को अपनाने का प्रयत्न करते हैं और शान्ति और भाईचारे से जीने की कोशिश करते हैं ।

- के. कल्याण

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