ज़िन्दगी में मुश्किलें इतनी आगई की जीना आसान होगया...!
ग़ालिब का यह शेर अदावत नहीं पर बहोत असर रखता है | यह शेर मेरे पापा के सबसे पसंदीदा शेरो में था | ना के वे इसे बहोत बार कहा करते थे, बलके उन्होंने इसे बखूबी जिया भी |
बचपन में जब पिताजी इसे सुनाते तो लगता की, "क्या यह भी कोई शेरो शायरी है, जिस में चार पंक्तियाँ भी नहीं हैं और कहते आवाज में उतार चढाव तक नहीं है?" पर अब लगता है की बात में दम है | आज जब मैं भी मुश्किलों से घिरजाता हूँ, तो पापा को याद कर ग़ालिब को दोहराता हूँ, तो हर मुश्किल में भी हिम्मत जुटा लेता हूँ |
मुझे लगता है की बार बार वही गिरता है जिस के लिए अभी गिराने की गुंजाईश बाकी है | जो गिर कर उठता है उसमे जीने की गुंजाईश बाकी है | और खुदा से जुड़े रहेंगे तो गिरकर सम्हालने की तरकीब आजाती है |
इस चित्र मे जैसे कोई ऊपर से छलांग लगा रहा है वह ऊपर तक रस्सी से खुद को बाँध कर जोड़े रखा है, ठीक उसी तरह गर हम ज़िन्दगी में हमेश उस खुदा से जुड़े रहेंगे तो कितने भी उतार चढ़ाव आए, हम अन्दर से स्थिर रहेंगे | यह बहोत बड़ी ताक़त है इंसान के लिए | आप क्या कहते हो दोस्त?
- के कल्याण
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