
योग गुरु, स्वामी, (बाबा) रामदेवजी, एक ऐसा नाम...
जिन्होंने न सिर्फ आरोग्य, आध्यात्म व सदाचार का पाठ सारे विश्व को पढ़ा रहे हैं, बल्के उसे अनुप्राणितकर अनुदिन जी कर दिखारहे हैं ।
जहाँ देश में भ्रष्ट, अनैतिक, व क्रौर्य का महिमा मंडन किया जा रहा है और जब चारों और इस व्यवस्था को लेकर निराशा का वातावरण फैला हुआ है, ऐसे समय उन्होंने फिर से भारतीय मूल्य, संस्कृति, व धरोहर को बचाने के लिए हुंकार उठाई है ।
चाहे तो वे हिमालय कि कण्डरावों में गुफावों में बैठ तपस्या कर अपनी मुक्ति कि गुहार लगा सकते थे, चाहे तो वे अधिकार शाही लोगों का चापलूसी कर उन का गुणगान कर उन से हर दिन सुबह शाम पाद पूजा करवाते, पर उन्हों ने उन सब को ठुकराकर इस देश के हर दीन, पीड़ित, शोषित विप्रों का सेवा कर उन सब को और इस देश को सारी दुनिया में न्याय दिलाने का संकल्प उठाया । जो ऐसी सुख-सुविधा, मान-सम्मान को ठुकराकर सत्य कि पथ पर चलकर पूरे सत्ता को ललकारनेवाले ऐसे संत तो विरलय ही होते हैं । कहे तो सदी में एक या दो । और हमारा अपना यह सौभाग्य है कि हम ने उन के काल खंड में जन्म लिया और उन का हाथ बटाकर साथ काम करने का हमे सुयोग मिला ।
वे सब से अलग इस लिए लगते हैं क्यों कि उन्हों ने न सिर्फ सत्य, सच्चरित्र व सदाचार का मार्ग दुनिया को दिखलाया पर उस सत्य व चरित्रवान जीवन को कैसे राष्ट्र निर्माण व सामजिक परिवर्तन के काम में उपयोग किया जा सकता है इसका बहुत बड़े स्तर पर उदाहरण प्रस्तुत किया है ।
ऐसे विश्व संत शिरोमणि भारत मा के सच्चे सपूत के अनुयायी कहलाने में हम धन्यता महसूस होती हैं । साथ ही, उस उपरवाले भगवान का आभार प्रकट करने का मन करता है कि उन्होंने हमें इन का सांगत्य दिया ।
अब चाहे आप हमें बाबा का भक्त कहो या पागल अब यह सब तो हमारेलिए उपहार हैं । पर अकेले में कभी अपने दिल को टटोल के देखना कि बाबा ने आप का क्या बिगाड़ा है और क्या छीना है और गर आप इन के जगह होते तो क्या आप इतने विरोध मोड़ लेते? गर कारोबार है तो, किसी को लूटने के लिए नहीं । गर इन का बिजनेस ही उद्देश होता तो क्यों खामखा सत्तावों से टकराते? गर आप कि आत्मा इन को सही कहे तो साथ जरूर देना ।
-- के. कल्याण
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